Temple of Jagannathji: महाभारतकालीन रेवाड़ी नगरी का इतिहास अति प्राचीन है। इतिहास के जानकार बताते है कि रेवाड़ी शहर का जगन्ननाथ मंदिर उड़ीसा के जगन्ननाथ मंदिर से भी पुराना है। शहर का जगन गेट जो अभी अस्तित्व में नहीं है। वो जगन्न द्वार था और मंदिर आने का मुख्य रास्ता हुआ करता था।
कहते है कि रेवाड़ी श्री कृष्ण के भाई बलराम की ससुराल रही है। राजा रेवत की बेटी रेवा के नाम पर रेवाड़ी शहर का नाम रेवाड़ी पड़ा था। स्वतंत्रता संग्राम के नायक राव गोपालदेव के वंशज एवं इतिहास के जानकार राव बीजेन्द्र सिंह बताते है कि रेवाड़ी शहर के बाराहज़ारी स्थित जगन्ननाथ जी मंदिर 1010 ई. से भी पुराना है। वो इसलिए कि उस वक्त मोहम्म्द गजनबी के सेना नायक इब्राहिम बाराहज़ारी रेवाड़ी के जगन्ननाथ जी के मंदिर (Temple of Jagannathji) को लूटने आया था। और वो यहाँ मारा गया था।
जगन्ननाथ जी की मूर्तियों को उड़ीसा के पूरी ले जाया गया
जिसके बाद क़ुतुबुद्दीन ऐबक रेवाड़ी आया था। जिस वक्त अभी रेवाड़ी शहर का कुतुबूपुर मोहल्ला है वहाँ क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने छावनी डाली थी। उस वक्त जब मंदिर (Temple of Jagannathji) को कोई लूटने आता था तो सबसे पहले मूर्तियों को बचाया जाता था। तब जगन्ननाथ जी की मूर्तियों को उड़ीसा के पूरी ले जाया गया था। जिसके बाद क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने ईब्राहिम बाराहज़ारी की यहाँ कब्र बनवाई थी। इसलिए आज भी शहर के इस हिस्से को बाराहज़ारी के नाम से जानते है।
1878 ये जगन्ननाथ जी की यात्रा का रिकॉर्ड
वहीं मंदिर के पुजारी टेकचंद गौड़ बताते है कि हर वर्ष शहर (Temple of Jagannathji) में निकलने वाली जगन्ननाथ यात्रा कभी नहीं रुकी। उनके पास एक दस्तावेज़ है जिसमें वर्ष 1878 में अंगेजों के शासन के दौरान यात्रा की अनुमति मांगी गई थी। उन्होने कहा कि अंगेज़ भी इस यात्रा को नहीं रोक पाये और ना भारत में आपातकाल के दौरान यात्रा रुकी और ना ही कोरोना काल के दौरान यात्रा रोकी गई।