दिवाली का त्यौहार आते ही बच्चों और बड़ो में अलग ही उत्साह होता है.घर और बाजार में हर जगह जगमगाहट रहती है. सबसे ज्यादा बड़ो और छोटों में पटाखों के लिए उत्साह रहता है. लेकिन कई सालों से पढ़ते प्रदूषण के कारण पटाखों पर रोक लगा दी गई है.अब केवल प्रशासन ने केवल ग्रीन पटाखे चलाने की मंजूरी दी है.आइए जानते है ग्रीन और सामान्यपटाखों में क्या अंतर है.
सामान्य पटाखे
अक्सर दिवाली के बाज वातावरण में धुंध सी छा जाती है। अक्सर लोगों को लगता है कि यह ठंड की वजह से है, लेकिन ऐसा नहीं है। सामान्य पटाखों में कई तरह के ऐसे केमिकल होते हैं, जिन्हें जलाने से काफी प्रदूषण होता है। खासतौर पर दीपावली के मौके पर जब ज्यादा लोग ऐसे पटाखे जलाते हैं, तो पॉल्यूशन का लेवल और बढ़ जाता है।
लोगों को हार्ट, किडनी और आंखों में जलन, सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन पटाखों में सल्फर के अलावा कई तरह के बाइंडर्स, स्टेबलाइजर्स, रिड्यूसिंग एजेंट, ऑक्सिडाइजर और रंग मौजूद होते हैं।वहीं जिनसे रंग-बिरंगी रोशनी होती है, उनमें यह एंटीमोनी सल्फाइड, बेरियम नाइट्रेट, लिथियम, एल्यूमीनियम, तांबा और स्ट्रांशियम के मिश्रण से बनते हैं।
इनको जलाने पर इनमें से कई प्रकार के केमिकल हवा में मिलते हैं और हवा की क्वालिटी को काफी बिगाड़ देते हैं। सर्दी के मौसम में कोहरे की वजह से एयर क्वालिटी इंडेक्स पहले से ही खराब स्थिति में होती है, ऐसे में पटाखे जलाने से यह और खराब हो जाती है।
ग्रीन पटाखे
नॉर्मल पटाखों में बारूद और अन्य ज्वलनशील रसायन होते हैं, जो जलाने पर फट जाते हैं और भारी मात्रा में प्रदूषण फैलाते हैं। लेकिन त्योहार है तो लोग पटाखे फोड़ेगे ही, तो इसके लिए ग्रीन पटाखों का ऑप्शन दिया गया है।
वहीं ग्रीन पटाखों में हानिकारक केमिकल नहीं होते हैं और वायु प्रदूषण कम होता है। वे पर्यावरण के अनुकूल होते हैं, यानि पारंपरिक पटाखों की तुलना में ग्रीन पटाखे कम हानिकारक होते हैं और वायु प्रदूषण को कम करते हैं।
ग्रीन पटाखों में, आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले प्रदूषणकारी केमिकल जैसे एल्यूमीनियम, बेरियम, पोटेशियम नाइट्रेट और कार्बन जैसे हानिकारक रसायन नहीं होते हैं। ग्रीन पटाखों में जो रसायनिक मिलाए जाते हैं, वो कम हानिकारक होते हैं। ये पटाखों साइज में भी काफी छोटे-छोटे होते हैं। इनकी आवाज भी कम होती है।