सैनिकों की खान कहे जाने वाले रेवाड़ी के वीर जवानों ने आजादी और आजादी के बाद हुई चीन और पाकिस्तान के साथ लड़ाई में वीरता का परिचय देते हुए हमेशा देश का मान बढ़ाया है. हरियाणा और हरियाणा के जिले रेवाड़ी के गांव-गलियों में जब कभी आप निकलोगे तो जवानों की वीरता के किस्से आपको सुनने को मिल जायेंगे.
आज हम रेवाड़ी के ऐसे दो स्वतंत्रता सेनानियों की जबानी आजादी की लड़ाई की कहानी बताने जा रहे है. जिन्होंने गुलामी की बेड़ियाँ तोड़कर अंग्रेजों से बगावत की और आजाद हिन्द फौज ( आईएनए) में भर्ती होकर आजादी की लड़ाई लड़ी. इस दौरान वो नेता जी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा दिए गए नारे “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा” ने क्रांतिकारियों में और जोश भर दिया था.
रेवाड़ी के गाँव कोसली निवासी स्वतंत्रता सेनानी मंगल सिंह और भुरथला निवासी स्वतंत्रता सेनानी हरी सिंह आजादी से पहले वर्ष 1940 में दुसरें विश्व युद्ध के दौरान सेना में भर्ती हुए थे. इस दौरान बागवत करके वो आजाद हिन्द फौज में भर्ती हो गए. इनमें से स्वतंत्रता सेनानी मंगल सिंह ने तो आजादी के बाद भी दौबारा सेना में भर्ती होकर चीन और पकिस्तान के साथ हुए युद्ध में भी देश का मान बढ़ाया है.
स्वतंत्रता सेनानी मंगल सिंह
स्वतंत्रता सेनानी मंगल सिंह का जन्म कोसली गाँव में हुआ था.जिनकी अब उम्र 102 वर्ष हो चुकी है। मंगल सिंह जब 20 वर्ष के थे तब दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था. गरीबी के दौर से गुजर रहे परिवार को देखते हुए मंगल सिंह सेना में भर्ती हो गए थे. जिन्होंने अंग्रेजो के साथ मिलकर जर्मनी और जापान के साथ युद्ध किया था.
इस दौरान गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए वो आजाद हिन्द फौज में भर्ती हो गए . जिसके बाद अंग्रेजो के साथ हुई लड़ाई के बाद उन्हें रंगून जेल में बंद कर दिया गया.छह महीने जेल में रखने के बाद उनका कोर्ट मार्शल करके छोड़ दिया गया था.छह महीने की जेल के दौरान उनको कई तरह की यातनाएं दी गई.जिसके बाद घर आकर वो खेती करने लगे.
चीन और पकिस्तान के साथ युद्ध में लिया हिस्सा
स्वतंत्रता सेनानी मंगल सिंह बताते है कि आजादी से पहले हिन्दुस्तान में कोई रोजगार के अवसर नहीं थे. सभी सामान बाहर से आता था. रोजी रोटी के लिए कपड़ो की मील और कृषि का कार्य ही था. जिसके कुछ समय बाद देश आजाद हुआ तो उन्हें फिर से सेना में भर्ती होने का मौका मिला और उन्होंने चीन और पकिस्तान के साथ हुए युद्ध में भी हिस्सा लिया. मंगल सिंह बताते है कि उन्होंने दो महीने पंजाब पुलिस में भी नौकरी की थी लेकिन वो नौकरी पसंद नहीं आई. जिसके बाद देश की सेवा के लिए वो सेना में भर्ती हो गए और 25 वर्ष की सर्विस के बाद वो रिटायर्ड होकर घर आ गए.
मंगल सिंह के बेट, बहु –पौत्र बताते है कि उन्हें गर्व है कि उनके बाबा आजादी की लड़ाई में शामिल हुए थे. पौत्रवधु कहती है कि उसे गर्व है कि वो दुल्हन बनकर स्वतंत्रता सेनानी के परिवार में आई है. अब उनके बाबा का सम्मान करने से जब शासन – प्रशासन के लोग आते है और उनके बारे में चर्चा होती है तो बहुत अच्छा लगता है.
स्वतंत्रता सेनानी हरीसिंह
स्वतंत्रता सेनानी मंगल सिंह जैसी ही कहानी कोसली के पास के ही गाँव भुरथला के स्वतंत्रता सेनानी हरीसिंह की है. हरीसिंह जी 105 वर्ष के हो चुके है. जो सुनने और बोलने में पूरी तरह से सक्षम नहीं है. लेकिन आजादी के समय वो कहाँ–कहाँ रहे और किस तरह से जेल में बंद करके उन्हें यातनाएं दी गई वो सब उनको याद है. वो 22 वर्ष की उम्र में वर्ष 1940 में भर्ती हुए थे. 1922 में आजाद हिन्द फौज में भर्ती हुए.अंगेजों के साथ लड़ाई लड़ी और दो साल जेल में बंद रहकर यातनाएं सहीं. जिसके बाद वर्ष 1946 में पकिस्तान के कराची बंदरगाह पर उन्हें छोड़ दिया गया. देश आजाद होने के बाद वो पंजाब आर्म्ड पुलिस में भर्ती हो गए. और 1980 में रिटायर्ड आ गए.
अकेले कोसली से ही 18 स्वतंत्रता सेनानी
आपको बता दे कि अकेले कोसली से ही 18 स्वतंत्रता सेनानी थे. जिनमें से केवल मंगल सिंह जी आज हमारे बीच है. वहीँ रेवाड़ी जिले के बड़ी संख्या में ऐसे लोग रहे है जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अहम् योगदान दिया. कोसली में बनाया गया युद्ध स्मारक और उस स्मारक पर अंकित किये गए नाम इस बात का सबूत भी है कि आजादी से पहले और आजादी के बाद भी इलाके के युवाओं ने देश के लिए जान न्यौछावर की है. जिनके बलिदान को देश कभी नहीं भूल पायेगा. युवाओं में आज भी सेना में भर्ती होने का इतना जज्बा है कि कोसली के तो हर घर में सैनिक है और युवाओं की पहली पसंद सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करना है.
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