आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) टेक्नोलॉजी की मदद से असली वीडियो में भी तब्दील किया जा सकता है। इस तरह के ‘डीपफेक’ वीडियो को पकड़ पाना काफी मुश्किल काम होता है। इस तरह के वीडियो किसी इंसान की छवि को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। ‘डीपफेक’ शब्द पहली बार वर्ष 2017 में चलन में आया था। यह टेक्नोलॉजी वीडियो और इमेज को घुमा सकती है, बांट सकती है और पैमाने बदल सकती है। इससे असली वीडियो को पहचानना मुश्किल हो जाता है और नकली वीडियो असली जैसा नजर आता है। ‘डीपफेक’ से सावधान रहने की आवश्यकता है।
सूत्रों के मुताबिक पूरी दुनिया में एआइ टेक्नोलॉजी सस्ती हो रही है और ज्यादा से ज्यादा लोग इसे अपना रहे हैं। डीपफैक को पहचान पाना मुश्किल काम होता है। इसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे यूट्यूब, फेसबुक और ट्विटर से पूरी दुनिया में फैलाया जा सकता है। शोध बताते हैं कि दुनियाभर के युवा न्यूज के लिए भी सोशल मीडिया काम में लेते हैं। सोशल मीडिया कंपनियां डीपफेक को रोकने के लिए प्रयास नहीं कर रही हैं। आने वाले समय में इनकी बाढ़ आ सकती है। इनसे कई तरह के खतरे पैदा हो सकते हैं और सूचनाओं की गंभीरता खत्म हो सकती है। डीपफेक से निपटने के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी हैं।
महिलाओं के सम्मान को डीपफेक से काफी नुकसान पहुंचाया जा रहा है। चालाक लोग महिलाओं के चेहरे का इस्तेमाल गलत वीडियो में करते हैं और उन्हें परेशान करने लगते हैं। सोशल मीडिया कंपनियों को डीपफेक पर रोक लगाने के लिए कठोर कदम उठाने चाहिए। कई लोग और संस्थान मिलकर डीपफेक को पकड़ने के लिए एल्गोरिद्म विकसित करने की योजना बना रहे हैं। आप किसी वीडियो को बेहद सावधानी के साथ देखकर डीपफेक को पकड़ सकते हैं। वीडियो में चेहरे के हाव-भावों से भी डीपफेक की पहचान हो सकती है।
कुछ दिनों पहले अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा एक वीडियो में मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को अपशब्द कह रहे हैं। इस वीडियो में बोलने वाला आदमी ओबामा नहीं है। उनके चेहरे को बड़ी सफाई के साथ बदल दिया गया। इसलिए अब इंटरनेट की दुनिया का वह दौर है, जब यहां कुछ भी भरोसा करना मुश्किल है। हाई प्रोफाइल लोग जैसे राजनेताओं और सेलिब्रिटीज के हजारों फोटोज और वीडियोज इंटरनेट पर मौजूद हैं। ये डीपफेक का आसान टारगेट होते हैं। बहुत ज्यादा डाटा होने के कारण इन्हें आसानी से एक्सचेंज किया जा सकता है। आमतौर पर इन्हें कॉमेडी के लिए काम में लिया जा सकता है, पर भविष्य में इनसे हमारी सुरक्षा और लोकतंत्र को खतरा पैदा हो सकता है। इनसे लोगों को गुमराह किया जा सकता है।
अगर आपको कोई वीडियो गड़बड़ लग रहा है तो ऑनलाइन जगत में इसका दूसरा वर्जन खोजना चाहिए। इसके लिए आप गूगल इमेज सर्च की मदद ले सकते हैं। यूट्यूब डाटा व्यूअर आपको बता सकता है कि कोई वीडियो कब अपलोड किया गया। यह रिवर्स इमेज सर्चिंग के लिए थंबनेल उपलब्ध करवाता है। डीपफेक रोकने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप कंटेंट शेयर करने की अपनी आदत को काबू में रखें। हाल ही में फेसबुक के सह-संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने कहा कि वास्तविक लगने वाले फर्जी वीडियो को रोकने के लिए मूल्यांकन आवश्यक है। इनके संबंध में एक नीति का विकास करना जरूरी है। जुकरबर्ग के अनुसार ‘डीप फेक’ वीडियो बिल्कुल अलग कैटेगिरी के वीडियो हैं। इन्हें झूठी जानकारी देने वाले वीडियोज से अलग रखना चाहिए।