79 साल के एक ऐसे गुरु से जिनकी जिदंगी की कहानी सभी की प्रेरणा बन गईं
कोरोना में अपनी पेंशन रिलीफ फंड में जमा करा दी, जीवन भर अनुशासन को अपनी ताकत बनाए रखा।
79 वर्ष के ‘श्री मास्टर बिशंबर दयाल जी’ कोरोना काल में प्रेरणा का स्रोत बने है। उन्होंने अपने पूरे महीने की पेंशन कोरोना रिलीफ में प्रदान की और कहा की “मेरी ओर मेरी पत्नी श्रीमती चलती देवी की तरफ से एक छोटी सी सहायता से अगर किसी को जिंदगी मिल सके इससे बड़ा पुण्य और क्या होगा, मास्टर बिशम्बर दयाल जी हरियाणा के गांव बेरली कलां के निवासी है। अपने जीवन के कठिन 79 वर्ष मे एक अच्छे इंसान होने के साथ -साथ उन्होंने जीवन का सार समझते हुए ओर भी बहुत कठिन, सही निर्णय भी लिए , जिससे उन्होंने अपने परिवारिक स्थिति को ही नही सुधारा बल्कि समाज मे शिक्षा पर विशेष जोर डालते हुए एक पहचान भी बनाई।
उनका जन्म बहुत ही अधिक गरीब परिवार मे हुआ, उनके पिता जी किसान थे और दूसरो की जमीन को जोता करते थे। परिवार बड़ा होने की वजह से पेट पालना मुश्किल भरा था। उन्होंने बहुत ही कम उम्र मे परिवार की जिम्मेदारियां अपने ऊपर ले ली थी। सर से पिता का साया उठने के पश्चात माँ व उनके 6 छोटे भाई बहनों की भी जिम्मेदारिया भी उनपर आ गयी थी। वो बताते है कि एक बार बारिश मे उनका छप्पर/झोपड़ी ढह गया था, सब ख़तम हो गया था, माताजी चलती देवी, बुढी अम्मा, बच्चो को लेकर जहा-तहा शरण ली। उन्होंने किसानी के साथ शिक्षा को अपना हथियार बनाया। और बहुत मेहनत और कठिन परिस्थितियों से गुजरते हुए समाज मे खुद को ही नही बल्कि अपने सभी भाई बहनों को भी खड़ा किया। उन्होंने उनके जीवन को एक दिशा दी। उनके अपने खुद के बच्चे भी पढाई मे अव्वल रहे। उनके अपने बेटे सत्यपाल जी के अलग से संघर्ष रहे बाउजी की चुनीतियो को अवसर मे बदलने के। आज सभी अपने अपने जीवन में आनंदमय है।
_मास्टर जी शुरू से गांव के सबसे पढे लिखे आदमी रहे है, उन्होंने दो विषयों मे मास्टर डिग्री हासिल की। उसके बाद B.Ed किया। इतिहास उनका पसंदीदा विषय रहा है और राजस्थान विश्विधालय के मेधावी छात्र रहे। उन्होंने राजकीय अध्यापक के रूप मे सेवा प्रदान की। उनके सभी छात्र आज भी उन्हे बहुत याद करते है मिलने के लिए घर भी आते रहते है। सबसे बडी उपलब्धि तो यही है की वो एक अच्छे इंसान है और आज के समय में अपने मूल्यों को जीवित रखा।
_मास्टर जी अपने समय मे हॉकि के बहुत अच्छे खिलाड़ी रहे है। एक बार प्रतियोगीता मे हॉकि से चोट लगने के कारण काफी असहनीय पीड़ा झेलनी पड़ी। डॉक्टरो ने ओपरेशन बताया था लेकिन इतनी आर्थिक स्थिति अच्छी नही होने से नही करा पाए।
देशी इलाज से समय अनुसार पीड़ा कम हुई। आज भी उनके चेहरे पर वो बड़ा ट्युमर देख सकते है। उनका कहना है कि “अब हॉकि तो खेल नही सकता पर ये याद बाकी है” हस्ते हुए… वो बताते है कि पढाई के साथ साथ खेल कूद, योग बहुत जरूरी है।
सुपौत्रि रुपक बताती है कि वैसे तो बाबा हर विषय पर खुलकर बात कर लेते है लेकिन इतिहास उनका पसंदीदा विषय रहा है जिसपे वो घन्टो बात कर सकते है। भारत की आजादी की घटनाएं, वीर सेनानियों की गाथा,अंतराष्ट्रिय व राष्ट्रिय इतिहास, मुगलो व दक्षिण भारत का इतिहास, राजा महाराजाओ की जीवनी आदि अनेको बाते। हमारे गांव परिवार मे बाउजी सभी बच्चो के हमेशा अतिप्रिय रहे है। बाबा ने बहुत सारे लोगो को स्वयं पढाया है। बल्कि हम तीनो भाई बहन को भी पढ़ाया। सारा काम वही करवाते थे स्कूल से आते ही। और अध्यापको को नोट भी लिखकर भेजते थे। मैंने वो समय बहुत याद आता है। सेवा-निवृत्ति के बाद बुढापे का जीवन बहुत निराश और तनावपूर्ण हो जाता है। ये ज्यादा लोगो से बाते करने वाले व्यक्ति भी नही थे। मुझे उनकी हमेशा चिंता रही।
•एक बार मैंने एक अलग सी प्रतिभा देखी कि बाबा पूरे अखबार की एक एक पंक्ति पढ़ते है, मेरे दो उपन्यास बहुत ही जल्दी पढ़कर ख़तम कर दिये तो मैंने उनके लिए और उपन्यास लाने शुरू कर दिये। मुझे अब उनकी रुचि भी समझनी थी कि किस तरह की लेखनी ज्यादा पढ़ते है कैसे नही। वो भी समझ आने लगा। मुझे बहुत खुशी और आश्चर्य दोनो है की आज के समय मे बच्चे पढ़ाई से दूर भागते है और मेरे बाउजी महीने मे 3+ नोवेल खत्म कर देते है। मेरे लिए बहुत मेहनत का काम होता है उनके लिए हर बार अच्छी और अलग किताबे, उपन्यास पत्रिका आदि उपलब्ध करवाना। पर उनको इतना पढ़ते देखकर सबसे बड़ी खुशी मिलती है। मुझे उनपे बहुत गर्व है। आज भी हम दोनो का एक जुड़ाव ये भी है। मैंने उनसे पूछा की बाबा आपको पढ़ना क्यों अच्छा लगता है। तो बोले कि “इंसान को ‘सीखना’ कभी नही छोड़ना चाहिए, सीखते रहना ही जिंदगी है। मुझे पढ़के संतुष्टि मिलती है”। मैं समझती हूँ कि पढ़ना बहुत अच्छी कला है इससे मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहते है। आज दोनो माता जी बाउजी परिवार मे अच्छे से जिंदगी व्यतीत कर रहे है।
आज भी इस उम्र मे उनको सब मुख्य तिथियाँ, तथ्य, विश्व की यादगार घटनाओं से वाक़िफ़ है जिससे पता चलता है की उन्होंने शिक्षा को सिर्फ व्यवसाय मात्र नही समझा बल्कि अपने जीवन के हर हिस्से में जिया है।
आज मास्टर जी के घर मे सभी शिक्षित है, उनके सुपौत्रिया भी मास्टर डिग्री होल्डर है अपने बाबा की तरह।एक रिसर्च के क्षेत्र मे कार्यरत है तो दूसरी फिजिक्स लेक्चरर है। उनके सुपोत्र भी GATE क्वालिफाइड है और कंपनी मे कार्यरत है। उनके एक दामाद AIS अफसर है और एक हरियाणा पुलिस मे कार्यरत है। उनके बेटे Hero Moto corp मे कार्यरत है। उनके बच्चे सत्यपाल व उर्मिला देवी जी ने भी उस समय बेटियों को बेटो के बराबर सिर्फ समझा ही नही बल्कि समाज मे उदाहरण बनाया। अपने बच्चों को उच्च शिक्षा प्रदान की। आज भी पूरा सहयोग देते है। आज सभी बच्चे कामयाब है ये सब तभी हुआ जब उन्होंने परिवार मे शिक्षा की नीव रखी।
मास्टर जी एक सेवानिवृत्त व्यक्ति है। परंतु अपनी सेवानिवृत्ति के बाद भी सक्रिय जीवन जी रहे है। उन्होंने इस चुनौती को अपने आप को किताबें पढ़ने में और रेडियो सुनने में व्यस्त रखते हुए एक अवसर में बदल दिया हैं। साथ ही दूसरो को भी मदद दे रहे है।
इस प्रकार हम बिशंबर दयाल जी की बहुत सी बाते अपने जीवन मे उतार सकते है और समाज व देश की प्रगति मे सहयोग कर सकते है। आज की नई पीढी को उनसे सीखना चाहिए। हम बिशंबर दयाल जी के स्वस्थ व आंनदमय जीवन की कामना करते है।