प्रदेश में धान कटाई का सीजन चल रहा है। जैसे ही धान की फसल से जमीन खाली हो रही है, किसान आलू और सरसों की अगेती किस्मों की बिजाई की तैयारी में है। कुरुक्षेत्र, अंबाला, करनाल के साथ-साथ रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, हिसार, पलवल समेत अन्य जिलों में डीएपी की मांग बढ़ रही है। जैसे ही केंद्रों पर खाद पहुंच रहा है, उसे हाथों हाथ खरीद लिया जाता है।
बड़ी दिक्कत यह है कि गांवों में स्थित 700 पैक्स समितियों पर खाद का स्टॉक नहीं है। ऐसे में खाद खरीदने को लेकर इधर से उधर भागदौड़ कर रहे हैं। सरकारी खरीद केंद्रों पर डीएपी का एक बोरा 1200 रुपये में मिलता है। उधर, कुछ निजी कारोबारी डीएपी को ब्लैक में बेचने की फिराक में हैं। प्रदेश में इफको, एनएफएल, चंबल समेत कई कंपनियां खाद की आपूर्ति करती हैं।
कृषि विभाग के अधिकारी बताते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीएपी में इस्तेमाल होने वाले फॉस्फोरिक एसिड और रॉक फॉस्फेट की कीमत बढ़ने से यह परिस्थितियां पैदा हुई हैं। देश में इसकी उपलब्धता काफी कम है। ये दोनों उत्पाद बाहर से मंगाए जाते हैं। इस बार डीएपी का उत्पादन पिछले सालों के मुकाबले कम है। इसी कारण कंपनियों से प्रदेश को कम सप्लाई आ रही है।
हरको बैंक के चेयरमैन अरविंद यादव ने कहा कि डीएपी खाद की सुचारु उपलब्धता को लेकर मुख्यमंत्री मनोहर लाल और कृषि मंत्री जेपी दलाल से बात हुई है। आगामी कुछ दिन में सभी 700 पैक्स पर डीएपी खाद पहुंच जाएगी। रबी सीजन में किसानों को खाद की कोई कमी नहीं रहेगी।
प्रदेश में डीएपी और यूरिया की कोई कमी नहीं है। किसानों द्वारा एक साथ ही अधिक मात्रा में डीएपी खरीदे जाने के कारण कुछ स्थानों पर दिक्कत आई है। सरकार के पास खाद का पर्याप्त स्टाक है और लगातार कंपनियां खाद की आपूर्ति दे रहे हैं। किसान जरूरत होने पर ही डीएपी खरीदें, इसे स्टॉक न करें, ताकि सभी को समय पर खाद मिल सके।
– मनजीत नैन, संयुक्त निदेशक, कृषि विभाग।
source: amar ujala