देश में शुरुआत में बुजुर्गों के कोरोना टीकाकरण अभियान के बाद वयस्कों को वैक्सीन लगाई गई और अब 18 साल से कम उम्र के बच्चों को भी वैक्सीन लगाई जा रही है. अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वैक्सीन के लिए किसी भी व्यक्ति को बाध्य नहीं किया जा सकता है. वैक्सीन लगाने को लेकर सरकार किसी पर अपनी मनमर्जी नहीं थोप सकती है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकार नीति बना सकती है और जनता की भलाई के लिए कुछ शर्तें लागू कर सकती है. लेकिन किसी बात को लेकर आमजन को बंदिश में नहीं रखा जाना चाहिए.
जस्टिस नागेश्वर राव और बीआर गवई की पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्ति को स्वतंत्रता का अधिकार है. ये उसकी निजी स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है. हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा कि वह संतुष्ट है कि मौजूदा टीकाकरण नीति को अनुचित और स्पष्ट रूप से मनमाना नहीं कहा जा सकता है.
सार्वजनिक स्थानों पर जाने की रोक नही
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि कुछ राज्य सरकारों ने वैक्सीन नहीं लगवाने वाले लोगों पर सार्वजनिक स्थानों पर जाने की रोक लगाई है. ये आनुपातिक नहीं है. जब कोरोना संक्रमण मामलों की संख्या कम है, तब तक ऐसे आदेश वापस लिए जाएं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कोविड टीकाकरण के प्रतिकूल प्रभावों पर डेटा सार्वजनिक करने का भी निर्देश दिया.
बता दें कि राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह टीकाकरण (NTAGI) के पूर्व सदस्य डॉ. याचिका जैकब पुलियल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. जैकब ने अपनी याचिका में कोर्ट से टीकों का क्लीनिकल ट्रायल और वैक्सीन लगने के बाद कोरोना के मामलों को लेकर डेटा सार्वजनिक करने के निर्देश देने की मांग की थी.