Home हरियाणा हरियाणा के 2 युवको ने पराली से बनाया बायो कोयला

हरियाणा के 2 युवको ने पराली से बनाया बायो कोयला

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युवा किसान विजय श्योराण और मनोज नेहरा ने बताया कि पराली के जलाने की वजह से दिल्ली व उसके आसपास गैस का चेंबर बन जाता है. उन दिनों विजिबिलिटी के साथ-साथ सांस लेने में भी समस्या होती है. ऐसे में अगर 50 प्रतिशत से भी ज्यादा पराली का निस्तारण इन प्लांट्स के जरिए हो जाता है, तो प्रदूषण में बेहद कमी आएगी और किसान पराली को नहीं जलाएंगे.

सस्ता एवम् उपयोगी

युवा किसान विजय श्योराण और मनोज नेहरा ने बताया कि जिन फैक्ट्रियों में काला कोयला इस्तेमाल होता है, उन्हें वह 20 रुपये प्रति किलो के हिसाब से मिलता है. ऐसे में कोयले के विकल्प के रूप में बायोकोल इस्तेमाल किया जाए, तो 7 रुपये किलो तक उन्हें मिल जाता है. इसके साथ ही काले कोयले की तुलना में यह कम प्रदूषण करता है और सल्फर ऑक्सीएड्स भी कम प्रोड्यूस करता है.

उद्यमी विजय श्योराण ने बताया कि वह खुद इसका इस्तेमाल कर चुके हैं और अब तक 250 टन से ज्यादा प्रोडक्शन करके अलग-अलग जगह सप्लाई कर चुके हैं. इस फार्मर कोयले के परिणाम बेहतर आए हैं. वहीं तकनीकी रूप से बात की जाए तो इस कोयले की कैलोरिफिक वैल्यू 5 हजार के करीब है, जोकि बाजार में मिलने वाले सामान्य कोयले के तुलना में बेहद अच्छी है. इसके साथ ही जो कोयला फिलहाल ईंट भट्टों में इस्तेमाल हो रहा है, उसकी कीमत 14 से 20 रुपये प्रति किलो है औऱ इस तकनीक के जरिए बना हुआ कोयला 7 से 8 रुपये प्रति किलो में बेचा जा रहा है.

जानिए कैसे बनता है फार्मर कोल

पराली के जरिए कोयला बनाने के लिए गाय के कंपोस्ट में पराली को मिलाकर ब्रीकेटिंग मशीन द्वारा कोयला तैयार किया जाता है. इसमें सबसे पहले पराली को ग्राइंडर में पीसा जाता है और उसके बाद उसमें 70 प्रतिशत और लगभग 30 प्रतिशत पशुओं के गोबर का कंपोस्ट मिलाकर मिक्स किया जाता है. जिसके बाद तैयार किए गए घोल को ब्रीकेटिंग मशीन के जरिए प्रेस कर छोटे-छोटे पैलेट बनाए जाते हैं.

इन पैलेट को कोयले के विकल्प के तौर पर उपयोग किया जाता है. इस तकनीक से जो फार्मर कोल बनाया है, इससे किसानों को भी फायदा है ताकि उन्हें खेत में बचा हुआ वेस्टेज जलाना न पड़े और जलाने की वजह से उनकी जमीन की उपजाऊ शक्ति भी नष्ट ना हो. साथ ही इसमें इस्तेमाल होने से किसानों को पराली के सही दाम भी मिलेंगे और उनकी समस्या भी खत्म हो जाएगी.

हर महीने कितनी पराली का होता है उपयोग

इस तकनीक के जरिए हर महीने लगभग ढाई सौ एकड़ की पराली का इस्तेमाल कर लेते हैं. ऐसे में अगर इस तकनीक को ज्यादा उपयोग में लिया जाए, तो पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण की समस्या से जल्दी निजात मिल सकती है. इस प्लांट से एक एकड़ की पराली से लगभग 3 टन कोयला तैयार किया जा सकता है. वहीं एक प्लांट से उस क्षेत्र के पांच गांवों के खेतों की पराली का कोयला बनाया जा सकता. इस प्लांट की कैपिसिटी रोजाना 10 टन कोयला बनाया जा सकता है.