Russian Ukraine War :यूक्रेन में फंसे रेवाड़ी जिला के विद्यार्थियों से जिला प्रशासन निरन्तर संपर्क में है. डीसी यशेन्द्र सिंह के दिशा निर्देशों के अनुरूप प्रशासनिक अधिकारी यूक्रेन में अध्ययन करने गए बच्चों के परिजनों से मिलकर उन्हें सरकार की ओर से उठाए जा रहे कदमों का अपडेट दे रहे हैं. इसी बीच रेवाड़ी की बेटी गरिमा भी सकुशल अपने घर लौट आई है.
गरिमा रेवाड़ी शहर के गढ़ी बोलनी रोड स्थित गुरुटैक सोसायटी की निवासी हैं. गरिमा ने बताया कि यूक्रेन की सीमा क्रॉस करने से पहले तक उसकी सांसें अटकी हुई थी. खासकर कीव पर अटैक होते ही उन्हें जान का खतरा लगने लगा था. हालांकि गरिमा कीव से काफी दूर चेरनिवस्ती शहर में पढ़ाई कर रही थी, जो रोमानिया से कुछ दूरी पर है, जिस कारण वह जल्द स्वदेश लौट सकी.उसने बताया कि उन्हें डर था कि कीव की तरह चेरनिवस्ती पर भी हमला हो गया तो जान जा सकती है.
गरिमा ने बताया कि 10 फरवरी के बाद जंग की चर्चा शुरू हो गई थी. 16 फरवरी को जंग शुरू होने की बात की जा रही थी. लेकिन 16 फरवरी के बाद तक सब कुछ नॉर्मल नजर आ रहा था. यूक्रेन के आम नागरिक सामान्य तरीके से जीवन जी रहे थे. उन्हें ही नहीं, बल्कि भारतीय स्टूडेंट को भी लग रहा था कि सबकुछ ठीक हो जाएगा. इसी बीच 23 फरवरी को फिर से युद्ध की चर्चा शुरू हुई. 24 फरवरी को यूक्रेन से भारतीय स्टूडेंट की फ्लाइट ने उड़ान भरनी थी, लेकिन इससे ठीक पहले जंग शुरू हो गई. इस वजह से स्टूडेंट यूक्रेन में ही फंस गए. सबसे ज्यादा खतरा तब हुआ, जब यूक्रेन की राजधानी कीव और खारकीव पर अटैक हुआ.
रुसी सेना ने 2 ही दिन में खारकीव को शमशान बना दिया. कीव भी अब शमशान और खंडहर में तब्दील हो चुका है. यूक्रेनियन ही नहीं, बल्कि भारतीय स्टूडेंट भी इस हमले से सहमे हुए हैं. कीव में सबसे ज्यादा स्टूडेंट फंसे हुए थे. इनमें उसकी जान-पहचान के भी स्टूडेंट है. भारतीय एम्बेसी का नोटिस आया कि उन्हें जल्द ही निकाल लिया जाएगा.इस नोटिस के बाद उनकी जान में जान आई.
चेरनिवस्ती और रोमानिया बॉर्डर की दूरी बहुत कम है, जिसकी वजह से कुछ घंटे के अंदर वह बॉर्डर पर पहुंच गए. हालांकि भारतीय स्टूडेंट ही नहीं, बल्कि यूक्रेनियन भी ईस्ट से वेस्ट की तरफ रूख कर रहे थे, जिसकी वजह से बॉर्डर पर भीड़ बढ़ गई. बावजूद इसके उन्हें यूक्रेन से निकालकर स्वदेश भेजा गया. कीव से रोमानिया बॉर्डर की दूरी भी काफी ज्यादा है. बहुत से स्टूडेंट भूखे-प्यासे घंटों पैदल चलकर बॉर्डर तक पहुंचे.
इस बीच जब तक वह घर नहीं पहुंची, उनके परिवार के लोग हर समय फोन पर उनके टच में रहे. गरिमा बताती है कि सबसे ज्यादा परेशानी उन भारतीय स्टूडेंट को हो रही है, जो कीव और खारकीव में फंसे हुए हैं. वे बंकर में रहने को मजबूर है.