आज गोकलगढ़ के ग्रामीणों बिमला पंच, शर्मिला यादव, नीतू, संतोष, राजकुमारी, संगीता यादव, राज शर्मा, नितेश कुमार, पिंकी कुमारी, स्नेहलता, शारदा शर्मा, राजेश कुमारी, दयावती, सोमवती, भरपाई के साथ रेवाड़ी के राजा रहे राजा मित्रसैन की पुण्यतिथि पर गोकलगढ़ स्थित उनकी समाधि पर जाकर बीजेपी नेता सतीश खोला ने नमन किया । सतीश खोला ने राजा मित्रसैन के बारे में विस्तारपूर्वक बताते हुए कहा कि राजा मित्रसैन की वीरता गांव गोकलगढ़ समेत आस-पास के दर्जनों गांवों तक चर्चित हैं पिछले कई सालों से ज्येष्ठ मास की अमावस को गांव की सभी महिलाएं व पुरुष इस दिन नए वस्त्रों में अपने-अपने हाथों में मिट्टी का करवा साथ लेकर घरों से एक साथ निकलती हैं व करवे में गेहूं व चने की बाकली और शक्कर भरकर गीत गाती हुई ये महिलाएं राजा मित्रसैन की समाधि के पास जाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करती है और मित्रसैन की वीरता की गाथा सुनाती हैं समय के साथ बहुत कुछ बदल गया, लेकिन 230 सालों से चली आ रही यह परंपरा आज भी कायम है। ज्येष्ठ मास की अमावस का दिन इस क्षेत्र के लिए ऐतिहासिक होता है।
वीरता की अनूठी कहानी गढ़ी थी राजा मित्रसैन ने । राजा मित्रसैन के बारे में यह कहा जाता था कि वह जिधर भी बढ़ गया, वहां अपनी जीत का डंका बजाकर ही वापस लौटता था। सन 1770-80 की बात है। रेवाड़ी रियासत के राजा तुलसीराम की मृत्यु के बाद उनके बेटे मित्रसैन ने बागडोर संभाली। मित्रसैन ने अपने पराक्रम व वीरता से सीमाओं का विस्तार करना शुरू कर दिया। 1781 में जयपुर-रेवाड़ी रियासत सीमा पर बहरोड तथा कोटपुतली को जीतकर रेवाड़ी रियासत में मिलाया। इस हमले से नाराज हुए जयपुर के महाराज ने एक विशाल सेना लेकर रेवाड़ी पर धावा बोल दिया। मित्रसैन की सेना ने गांव मांढ़ण के पास जयपुर सेना को बुरी तरह से परास्त कर दिया। राजा मित्रसैन की सेना ने इसके बाद नारनौल पर आक्रमण किया और विजय हासिल कर अपने राज्य में मिलाया। गढी बोलनी के सरदार गंगा किशन मित्रसैन से ईर्ष्या रखता था, वह मराठों से जा मिला। मराठा सरदार महादजी सिंधिया के साथ सांठगांठ करके रेवाड़ी पर आक्रमण किया। इस युद्ध में मराठा बुरी तरह पराजित हुए। एक साल बाद मराठों ने तैयारी के साथ फिर हमला बोला, लेकिन उन्हें इस बार भी मुंह की खानी पड़ी।
यह वह समय था जब मराठों की तूती बोलती थी। गीता के जरिये वीरता की गाथा लगातार हार से बौखलाए मराठों ने राजा मित्रसैन की पीठ में छुरा घोंपने का काम किया। मराठों ने साजिश के तहत मित्रसैन को संदेश भेजा, जिसमें लिखा था कि हमारा मकसद भारत में हिंदू राज स्थापित करना है। आपको बराबरी को सम्मान मिलेगा। मित्रसैन ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, लेकिन उसकी रानी, मां व बहन सभी ने इस प्रस्ताव को धोखा बताया। इस बारे में एक गीत आज भी गांव गोकलगढ़ में हर उत्सव पर महिलाओं द्वारा गाया जाता है। गीत है ‘बजो रै नगारो राजा जी के चौतरे, माता बिरजे मित्तर सिंह अबकी, ना जाई बेटा डहंड कै पास…।’ गोकलगढ़ और लिसाना के बीच में डहंड के स्थान पर मराठों के तंबू गड़े थे और वहीं पर मित्रसैन को मिलने के लिए बुलाया गया था। वहां पहले से घात लगाए बैठे मराठा सैनिकों ने राजा मित्रसैन पर धोखे से हमला बोल सिर काट दिया। हरियाणा इतिहास एवं संस्कृति अकादमी के पूर्व निदेशक स्वर्गीय डॉ. केसी यादव ने अपनी पुस्तक ‘अहीरवाल इतिहास एवं संस्कृति’ में लिखा है कि युद्ध के बाद मराठों ने राजा मित्रसैन के पूरे परिवार को खत्म कर दिया था